Wednesday, July 29, 2015

उद्देश्य एवं लक्ष्य :

  • (01) सम्पूर्ण भारत में और भारत के बाहर किसी भी देश में-निजी, कार्यालयीन, सरकारी, गैर-सरकारी या राष्ट्रीय या अन्य किसी उद्देश्य से-सरकारी आदेश से स्थायी या अस्थाई तौर पर रहने/निवास करने वाले सभी वंचित (Deprived), शोषित (Exploited), विपन्न (Poor), दलित (Depressed), आदिवासी (Tribal), पिछड़े (Backward), पिछड़े अल्पसंख्यक (Backward-Minority), घुमन्तू (Nomad) आदि कमजोर वर्गों (Weaker Sections/Classes) के सभी भारतीय नागरिकों को उनकी पृथक-पृथक कुल जनसंख्या के अनुपात में सभी क्षेत्रों में समान हिस्सेदारी और प्रतिनिधित्व दिलाने, हर प्रकार से और हर प्रकार की सुरक्षा तथा संरक्षण प्रदान करने, सभी को जागरूक, सजग, सतर्क और स:शक्त बनानेे तथा इन सभी वर्गों की समग्र प्रगति एवं इनका समग्र उत्थान सुनिश्‍चित करने के लिये इन सभी वर्गों के नागरिकों को इस संगठन की आजीवन सदस्यता प्रदान करना।
  • (02) ऐसी सामाजिक, संस्कृतिक, आर्थिक, शैक्षणिक, कानूनी, न्यायिक, राजनैतिक एवं संवैधानिक व्यवस्था बनाना या बनवाने के प्रयास करना, जिसमें इस संगठन की न्याय, समानता, स्वाभिमान और तार्किकता पर आधारित विचारधारा के अनुसार सभी देशवासी अपने आत्मसम्मान और स्वाभिमान के साथ अपने सभी अधिकार और कर्त्तव्यों का बिना किसी रुकावट या बिना किसी प्रकार के भेदभाव के समान रूप से उपयोग और उपभोग कर सकें।
  • (03) उक्त बिन्दु-4 के उप बिन्दु (1) में वर्णित सभी वर्गों की परिस्थितियों का गहन, स्वतन्त्र तथा निष्पक्ष शोध सर्वेक्षण, अध्ययन और अन्वेषण करना तथा इनके सभी प्रकार के अधिकारों, हितों, समग्र उत्थान आदि के लिये जो भी जरूरी हो त्वरित कार्यवाही करना, करवाना और इन सभी के कल्याण, संरक्षण, विकास, प्रगति और ज्ञानार्जन के लिये जरूरी गतिविधियों तथा कार्यकलापों में भाग लेना और इन सभी वर्गों के हित में ऐसी गतिविधियॉं संचालित करने के साथ-साथ इन सभी के हित में जो भी सम्भव हो प्रयास करना और करवाना।
  • (04) उक्त बिन्दु-4 के उप बिन्दु (1) में वर्णित सभी वर्गों को मानसिक गुलामी, पूंजीवाद और काले अंग्रेजों के गठजोड़ से मुक्ति दिलाकर इन वर्गों को इनको हितों में कार्य करने हेतु जागरूक और प्रोत्साहित करना/करवाना। 
  • (05) उक्त बिन्दु-4 के उप बिन्दु (1) में वर्णित सभी वर्गों को संविधान में उपबन्धित प्रावधानों के अनुसार इनकी जनसंख्या के अनुपात में सभी क्षेत्रों मेंं वास्तविक प्रतिनिधित्व एवं वास्तविक तथा समान भागीदारी सुनिश्‍चित करवाकर सामाजिक न्याय की संवैधानिक अवधारणा के लक्ष्य की प्राप्ति के लिये हर सम्भव प्रयास करना/करवाना।
  • (06) उक्त बिन्दु-4 के उप बिन्दु (1) में वर्णित सभी वर्गों के लोगों को अपने निजी विश्‍वास और आस्था के अनुसार धार्मिक अधिकारों की प्राप्ति के लिये संवैधानिक संरक्षण प्रदान करना/करवाना।
  • (07) उक्त बिन्दु-4 के उप बिन्दु (1) में वर्णित सभी वर्गों के लोगों के सभी संवैधानिक और कानूनी अधिकारों के संरक्षण के लिये सभी लोक सेवकों, जन प्रतिनिधियों और समाज के उत्तरदायी लोगों में सामाजिक जिम्मेदारी के निर्वाह का भाव उत्पन्न करने के लिये सतत जनजागरण अभियान चलाना/चलवाना।
  • (08) उक्त बिन्दु-4 के उप बिन्दु (1) में वर्णित सभी वर्गों के हितों को संरक्षण प्रदान नहीं करने वाले या इन वर्गों को प्रताड़ित या शोषित या उपेक्षित करने वाले लोक सेवकों के विरुद्ध कठोर कानूनी कार्यवाही संस्थित करवाने हेतु वर्तमान कानूनों को सख्ती से लागू करवाना और नये कठोर कानून बनवाने के प्रयास करना/करवाना।
  • (09) उक्त बिन्दु-4 के उप बिन्दु (1) में वर्णित सभी वर्गों का विधायिका में सही प्रतिनिधित्व नहीं करने वाले जन प्रतिनिधियों को वापस बुलाने के संवैधानिक प्रावधान बनवाने/करवाने के लिये प्रयास करना/करवाना।
  • (10) उक्त बिन्दु-4 के उप बिन्दु (1) में वर्णित सभी वर्गों के लोगों के मानसिक, शारीरिक, सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक, संस्कृतिक और राजनैतिक उत्थान के लिये हर सम्भव प्रयास करना और करवाना।
  • (11) उक्त बिन्दु-4 के उप बिन्दु (1) में वर्णित सभी वर्गों के लोगों को उनके राजनैतिक और संवैधानिक हकों की जानकारी प्रदान करके उन्हें इस प्रकार से जागरूक और प्रशिक्षित करना, जिससे कि वे संविधान के अनुसार राजनीतिक प्रतिनिधियों के सही चयन और चुनाव करने की समझ और योग्यता अर्जित कर सकें।
  • (12) उक्त बिन्दु-4 के उप बिन्दु (1) में वर्णित सभी वर्गों के लोगों के समग्र उत्थान और कल्याण हेतु हक रक्षक दल के नियन्त्रणाधीन इन सबके विकास और कल्याण के लिये कोष की स्थापना करना/करवाना।
  • (13) उक्त बिन्दु-4 के उप बिन्दु (1) में वर्णित सभी वर्गों के लोगों के संवैधानिक, वैधानिक, प्रशासकीय आदि सभी अधिकारों और सुविधाओं के विस्तार, सुधार, संरक्षण तथा पुनरीक्षण के लिये कार्य करना/करवाना।
  • (14) उक्त बिन्दु-4 के उप बिन्दु (1) में वर्णित सभी वर्गों की जनसंख्या के अनुपात में सभी को विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व सुनिश्‍चित करवाने के लिये कार्य करना/करवाना।
  • (15) उक्त बिन्दु-4 के उप बिन्दु (1) में वर्णित सभी वर्गों को सभी सरकारी सेवाओं के सभी पदों पर नियुक्ति तथा पदोन्नति में प्रतिनिधित्व/आरक्षण के अ-उल्लंघनीय और कठोर प्रावधान लागू करना/करवाना।
  • (16) उक्त बिन्दु-4 के उप बिन्दु (1) में वर्णित सभी वर्गों की सरकार द्वारा प्रति दस वर्ष बाद जातिगत जनगणना करवाकर उनकी पृथक-पृथक जनसंख्या प्रतिशत के अनुपान में आरक्षण/प्रतिनिधित्व का पुनर्निधारण करवाना।
  • (17) जो जाति या जनजाति जिस किसी भी राज्य/राज्यों में बहुतायत में पायी जाती है, वहॉं के आधार पर उसे जिस किसी आरक्षित वर्ग में शामिल किया गया है, उसी के अनुसार उस जाति को देश के अन्य सभी राज्यों में भी उसी आरक्षित वर्ग की सूची में शामिल करवाने के लिये कार्य करना/करवाना।
  • (18) आरक्षित वर्ग के ऐसे लोक सेवक जो अपने गृहराज्य से बाहर अन्य राज्यों या केन्द्र शासित प्रदेशों में राज्य या केन्द्र सरकार के अधीन किसी भी पद पर स्थायी या अस्थायी तौर पर पदस्थ/सेवारत होकर सपरिवार निवास करते हैं, वहॉं पर उनकी जाति या जनजाति को यदि उनके गृहराज्य के अनुसार आरक्षित वर्ग की सूची में शामिल नहीं किया हुआ है, तो इस कारण से उन परिवारों को उन सभी संवैधानिक, वैधानिक और नीतिगत लाभों से वंचित नहीं किया जा सकता, जो उनके गृहराज्य में रहते हुए उन्हें देय/प्राप्त हैं। अत: ऐसे परिवारों को जहॉं पर वे स्थायी/अस्थायी रूप से निवास कर रहे हैं, वहॉं पर वे सभी संवैधानिक, कानूनी और नीतिगत लाभ और संरक्षण सुनिश्‍चित करने/करवाने के लिये परिणामदायी कार्य करना/करवाना जो उनको अपने गृहराज्य में देय हैं।
  • (19) उक्त बिन्दु-4 के उप बिन्दु (1) में वर्णित सभी वर्गों की अपनी-अपनी पृथक, विशिष्ट और मौलिक समस्याओं के समयानुकूल विश्‍लेषण, निराकरण एवं त्वरित समाधान हेतु पृथक-पृथक प्रत्येक वर्ग के स्वतन्त्र और अधिकार सम्पन्न सशक्त आयोगों की केन्द्रीय एवं प्रान्तीय स्तरों पर स्थापना करवाने हेतु प्रयास करना और करवाना।
  • (20) उक्त बिन्दु-4 के उप बिन्दु (1) में वर्णित सभी वर्गों के आर्थिक रूप से विपन्नतम परिवारों को आयकर, वृत्तिकर, उत्पादकर, सेवाकर इत्यादि से आंशिक/पूर्णत: मुक्त करवाने हेतु प्रयास करना और करवाना।
  • (21) भारतीय संविधान में उपबन्धित विशेष प्रावधानों के अनुसार आदिवासियों के विशिष्ट संवैधानिक अधिकारों तथा प्रावधानों के क्रियान्वयन और आदिवासियों के कानूनी संरक्षण के लिये हर सम्भव काम करना और करवाना।
  • (22) इस संगठन द्वारा देश हित में हर सम्भव ऐसे कदम उठाये जायेंगे, जिनसे कि सरकारी, अर्द्धसरकारी या गैर-सरकारी या निजी क्षेत्र में व्याप्त कुप्रबन्धन, कुव्यवस्था, सामन्तशाही, लालफीताशाही और अफसरशाही के चंगुल से देश की संवैधानिक और वैधानिक व्यवस्था को मुक्त करवाया जा सके और सरकारी, अर्द्धसरकारी या गैर-सरकारी या निजी क्षेत्रों में कार्यरत सभी संस्थानों, निकायों, उपक्रमों, अधिकरणों, अभिकरणों या कार्यालयों का लोकहित में बेहतर प्रबन्धन और प्रशासकीय संचालन सुनिश्‍चित हो सके।
  • (23) इस संगठन द्वारा सूचना का अधिकार, मतदान का अधिकार और निर्वाचित जन प्रतिनिधियों/लोक सेवकों द्वारा वास्तविक प्रतिनिधित्व नहीं किये जाने पर, जनता द्वारा उनको वापस बुलाने के अधिकार आदि अधिकारों को संविधान में मूल अधिकारों के रूप में शामिल करवाने के लिये हर सम्भव प्रयास करना/करवाना।
  • (24) स्थानीय निकायों और पंचायत राज संस्थानों में प्रत्येक स्तर पर प्रत्येक वर्ग की जनसंख्या के अनुसार जन प्रतिनिधियों के लिये चुनाव क्षेत्रों का निर्धारण करने की लॉटरी प्रणाली को बदलवाकर/संशोधित करवाकर लोकसभा और विधानसभाओं की तरह से निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण/आरक्षण करवाना। जिससे अपने क्षेत्र से जुड़े जन प्रतिनिधि वहॉं के विकास के लिये स्थायी एवं दूरगामी योजनाएँ बनाकर विकास करवा सकें।
  • (25) यह संगठन न्यायपालिका में वकीलों में से सीधे जजों की नियुक्ति के खिलाफ है। अत: यह संगठन ऐसे प्रयास करेगा, जिससे कि सुप्रीम कोर्ट तक सभी जजों को पदोन्नति के आधार पर या अन्य किसी न्यायसंगत और पारदर्शी प्रक्रिया से भरा जा सके और न्यायपालिका में प्रत्येक स्तर पर उक्त बिन्दु-4 के उप बिन्दु (1) में वर्णित सभी वर्गों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में पृथक-पृथक प्रतिनिधित्व/आरक्षण प्रदान किया जा सके।
  • (26) अंग्रेजी भाषा में वैधानिक, प्रशासनिक और न्यायिक कार्यवाही संचालित होने के कारण उक्त बिन्दु-4 के उप बिन्दु (1) में वर्णित सभी वर्गों को न्याय, प्रतिनिधित्व और हिस्सेदारी प्राप्ति में बाधा उत्पन्न हो रही है। इसलिये यह संगठन न्यायिक कार्यवाही में केवल अंग्रेजी के उपयोग के खिलाफ है। अत: इस संगठन द्वारा सरकार को इस बात के लिये सहमत किया जायेगा कि भारत की संसद द्वारा सभी कानून/अधिनियम अनिवार्य रूप से हिन्दी में बनाये जावें, बेशक बाद में उनका सभी राज्यों की भाषाओं और अंग्रेजी में व्यावहारिक अनुवाद कर दिया जावे।
  • (27) अंग्रेजी भाषा में वैधानिक, प्रशासनिक और न्यायिक कार्यवाही संचालित होने के कारण उक्त बिन्दु-4 के उप बिन्दु (1) में वर्णित सभी वर्गों को न्याय, प्रतिनिधित्व और हिस्सेदारी प्राप्ति में बाधा उत्पन्न हो रही है। इसलिये यह संगठन न्यायिक कार्यवाही में केवल अंग्रेजी के उपयोग के खिलाफ है। अत: इस संगठन द्वारा सरकार को इस बात के लिये सहमत किया जायेगा कि सभी राज्यों की विधानसभाओं में सभी कानून/अधिनियम अनिवार्य रूप से राज्य द्वारा स्वीकृत भाषा में ही बनाये जावें, बेशक बाद में उनको यदि सम्भव और जरूरी हो तो अन्य राज्यों की स्थानीय भाषाओं और अंग्रेजी में भी सरलता से अनुवादित कर दिया जावे।
  • (28) अंग्रेजी भाषा में वैधानिक, प्रशासनिक और न्यायिक कार्यवाही संचालित होने के कारण उक्त बिन्दु-4 के उप बिन्दु (1) में वर्णित सभी वर्गों को न्याय, प्रतिनिधित्व और हिस्सेदारी प्राप्ति में बाधा उत्पन्न हो रही है। इसलिये यह संगठन न्यायिक कार्यवाही में केवल अंग्रेजी के उपयोग के खिलाफ है। इसलिये इस संगठन द्वारा सरकार को इस बात के लिये सहमत किया जायेगा कि भारत सरकार का सम्पूर्ण प्रशासनिक कामकाज केवल राजभाषा हिन्दी में किया जावे। नीतिगत मामलों को और अहिन्दी भाषी राज्यों से सम्बन्धित मामलों को उन राज्यों की स्थानीय भाषा में और जरूरी हो तो अंग्रेजी में सरलता से अनुवादित कर दिया जावे।
  • (29) अंग्रेजी भाषा में न्यायिक कार्यवाही संचालित होने के कारण उक्त बिन्दु-4 के उप बिन्दु (1) में वर्णित सभी वर्गों को न्याय प्राप्ति में बाधा उत्पन्न होती है। इसलिये इस संगठन द्वारा विधायिका और कार्यपालिका को इस बात के लिये सहमत किया जायेगा कि न्यायपालिका में भर्ती किये जाने वाले मजिस्ट्रेटों/न्यायाधीशों को स्थानीय भाषा और हिन्दी भाषा में प्रवीणता प्राप्त हो। जिससे उनको स्थानीय भाषा में और हिन्दी भाषा में मामले सुनने, विवेचना करने और निर्णय सुनाने में किसी प्रकार की व्यावहारिक दिक्कत नहीं हो।
  • (30) अंग्रेजी भाषा में न्यायिक कार्यवाही संचालित होने के कारण उक्त बिन्दु-4 के उप बिन्दु (1) में वर्णित सभी वर्गों को न्याय प्राप्ति में बाधा उत्पन्न होती है। इसलिये इस संगठन द्वारा विधायिका और कार्यपालिका को इस बात के लिये सहमत किया जायेगा कि अमरीका की भांति भारत के प्रत्येक राज्य में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट प्रत्येक राज्य स्तर पर स्थापित किये जावें। जिनमें उन्हीं राज्यों के न्यायाधीश हों, जो उस राज्य की स्थानीय भाषा के साथ- साथ राजभाषा हिन्दी में प्रवीणता प्राप्त हों। जिससे प्रादेशिक स्तर पर ही लोगों को सर्वोच्च स्तर तक का न्याय अपनी-अपनी भाषाओं में आसानी से मिलना सम्भव हो सके।
  • (31) अंग्रेजी भाषा में न्यायिक कार्यवाही संचालित होने के कारण उक्त बिन्दु-4 के उप बिन्दु (1) में वर्णित सभी वर्गों को न्याय प्राप्ति में बाधा उत्पन्न होती है। इसलिये इस संगठन द्वारा विधायिका और कार्यपालिका को इस बात के लिये सहमत किया जायेगा कि भारत की राजधानी में अमरीका की भॉंति संघीय न्यायालय की स्थापना की जावे, जो केवल संवैधानिक, अन्तर्राज्यीय और संघीय मामलों की सुनवाई करे। संघीय न्यायालय की न्यायिक कार्यवाही अंग्रेजी और राजभाषा हिन्दी में संचालित की जावें।
  • (32) यह संगठन ऐसे प्रयास करेगा, जिससे सामान्य परिस्थितियों में किसी भी राज्य में कानून और व्यवस्था लागू करने के सम्बन्ध में केन्द्र सरकार का किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं हो। जिसके लिये सभी प्रकार के कानून सभी राज्यों द्वारा हर राज्य की स्थानीय परिस्थितियों और जरूरतों के अनुसार बनाकर लागू किये जा सकें।
  • (33) यह संगठन अपने सभी सदस्यों के मार्फत ऐसे प्रयास करेगा, जिससे कि-जन्मजातीय विभेदकारी व्यवस्था, जनसंख्या वृद्धि, अशिक्षा, बाल विवाह, अंधविश्‍वास, कुप्रथा, सट्टा, लॉटरी, जुआ, मद्यपान इत्यादि के दुष्परिणामों से सभी को अवगत करवाकर, समाज को इन सभी बुराईयों से मुक्ति दिलाकर सत्यनिष्ठ, तर्कशील, विज्ञान-सम्मत और प्रगतिशील जीवन जीने के लिये प्रोत्साहित किया जा सके।
  • (34) यह संगठन के निर्धारित उद्देश्यों और लक्ष्यों के प्राप्ति के लिये सम्पूर्ण भारत में कहीं भी इस संगठन के स्थायी या अस्थायी प्रधान/मुख्य/कार्यकारी/चलते-फिरते/शाखा/इकाई इत्यादि प्रकार/स्तरों के कार्यालयों की स्थापना करके उनका प्रबन्धन और संचालन सुनिश्‍चित करना/करवाना।
  • (35) सामाजिक, धार्मिक या अन्य भेदभाव, मनमानी, उत्पीड़न, छुआछूत, भ्रष्टाचार, अत्याचार, असमानता, शोषण, गैर-बराबरी, जन्मजातीय विभेद, वैमनस्यता आदि के बारे में समस्त सदस्यों व उनके परिजनों को कानूनी संरक्षण व शीघ्र न्याय दिलाने के लिए इस संगठन के लिये काम/उचित कार्यवाही करना व करवाना।
  • (36) देशभर में प्रत्येक स्तर पर, प्रत्येक परिस्थिति में कानून एवं व्यवस्था बनाये रखने में देश की सेना, पुलिस व सामान्य प्रशासन को और केन्द्र व राज्य सरकार के सभी विभागों और कार्यालयों के सभी स्तर के लोक सेवकों का सक्रिय और सकारात्मक सहयोग करना/करवाना।
  • (37) इस संगठन के कार्यक्षेत्र में कहीं भी सरकारी, गैर-सरकारी, निजी आदि सभी क्षेत्रों से सामाजिक, धार्मिक या अन्य भेदभाव, भ्रष्टाचार, अत्याचार, गैर बराबरी, असमानता, शोषण, क्रूरता, आदि विधि-विरुद्ध या अनैतिक कृत्यों या देश की एकता, अखण्डता, सम्प्रभुता एवं साम्प्रदायिक तथा सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने वाले क्रियाकलापों या सम्भावनाओं आदि के लिए उत्तरदायी तथ्यों, कारकों, कारणों व जिम्मेदार लोगों, वर्गों, समुदायों आदि का पता लगाने के लिए तटस्थता पूर्वक अन्वेषण करने/करवाने हेतु अन्वेषण करने के लिये फोटोग्राफी/शूटिंग करना/करवाना और समय एवं स्थान की मांग के अनुसार किसी भी सम्भव तरीके से अन्वेषण कर आंकड़े तैयार करना/करवाना तथा उक्त सभी के समाधान, निवारण एवं उन्मूलन के लिये सुधारात्मक, सकारात्मक या विधिक कार्यवाही हेतु सक्षम प्राधिकारियों और सरकार को सिफारिश, अनुशंसा, प्रतिवेदन, ज्ञापन, रिपोर्ट आदि प्रस्तुत कर, जिम्मेदार लोगों/ संस्थानों/प्रतिष्ठानों/ उपक्रमों आदि को सुधारना या सुधरने को प्रोत्साहित करना/करवाना या जनहित में उन्हें कानून के अनुसार परिवर्तित/दण्डादिष्ट करवाने के लिए समुचित विधिक कार्यवाही संस्थित करना व करवाना।
  • (38) अन्तर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय, प्रादेशिक, क्षेत्रीय आदि विभिन्न विधियों, नियमों, प्रावधानों, नीतियों, साहित्य, शोध, ज्ञान, अधिकार, कर्त्तव्यों आदि से तथा ऐसी जानकारी या सामग्री से जो समाज में गैर-बराबरी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, तानाशाही, भेदभाव, असमानता, नाइंसाफी, शोषण, जन्मजातीय विभेद आदि विधि-विरुद्ध या अनैतिक या देश की एकता, अखण्डता, सम्प्रभुता एवं साम्प्रदायिक तथा सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने वाले क्रियाकलापों को रोकने में सहायक हो सके, से इस संगठन के सदस्यों व आम जनता को अवगत करवाना या इन सभी का पालन करने/ करवाने व इनका लाभ उठाने के लिए सभी को प्रोत्साहित करना/करवाना।
  • (39) सदस्यों में सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, ऐतिहासिक, शैक्षणिक, आर्थिक, धार्मिक, वैज्ञानिक, तार्किक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, संवैधानिक, स्वास्थ्य रक्षक इत्यादि की सैद्धान्तिक और व्यावहारिक चेतना विकसित करना।
  • (40) मानव समाज और समस्त जीव-जन्तुओं के संरक्षण हेतु सभी प्रकार के प्रदूषण की रोकथाम करवाना।
  • (41) संविधान में वर्णित नागरिकों के मूल अधिकारों के क्रियान्वयन और संरक्षण के लिये कार्य करना/करवाना। 
  • (42) संविधान में वर्णित नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों के क्रियान्वयन और संरक्षण के लिये कार्य करना/करवाना। 
  • (43) संविधान में वर्णित नागरिकों के नीति-निदेशक तत्वों के क्रियान्वयन और संरक्षण के लिये कार्य करना/करवाना।
  • (44) सदस्यों के हित में व्यावसायिक प्रशिक्षण तथा कौशल विकास के मानकों में सुधार लाने में सहायता करना।
  • (45) सदस्यों को आधुनिक तकनीक और सोशल मीडिया के बारे में सरलतम तरीके से व्यावहारिक जानकारी देना। 
  • (46) ऐसे कार्यकलापों का संचालन करना, जिनका लक्ष्य सदस्यों के वर्गों का आर्थिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, राजनैतिक, मानसिक एवं सामाजिक विकास और पर्यावरण का संरक्षरण सुनिश्‍चित करना हो। 
  • (47) सरकारी, अर्ध-सरकारी एवं निजी क्षेत्र में आरक्षण एवं समान भागीदारी को सुनिश्‍चित करवाना। 
  • (48) सदस्यों को जनसंख्या स्थरीकरण की विज्ञान आधारित-सकारात्मक जानकारी प्रदान करना/करवाना।
  • (49) धैर्यपूर्ण अध्ययन और अनुसंधान के द्वारा और अंतर्निहित एकता के आधार पर सभी वर्गों की पूर्व की विभिन्न संक्रतियों संस्कृतियों के माध्यम से, एक दूसरे के साथ अधिकतम मधुर सम्बन्धों की स्थापना को सुनिश्‍चित करना। 
  • (50) विभिन्न विषयों के सम्बन्ध में सत्य के अन्वेषण और आत्मसातीकरण के विभिन्न पहलुओं के सन्दर्भ में सदस्यों के मन (मानव मन) और उनके दृष्टिकोण का हर प्रकार से अध्ययन, शोध और अन्वेषण करना। 
  • (51) सदस्य-किसानों, मजदूरों और ग्रामीणों की दोस्ती और उनके स्नेह को प्रगाढ़ करने के लिए, उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं और क्षेत्रों में रूचि लेना, अध्ययन, शोध, अन्वेषण, सर्वेक्षण के जरिये उनके कल्याण के लिए उनकी समस्याओं के हल ढूँढने में उनकी हर सम्भव मदद और सहायता करना/करवाना। 
  • (52) सदस्यों के हितार्थ-ग्रामीण अर्थव्यवस्था, ग्रामीण संस्कृति और ग्रामीणों के व्यावहारिक अनुभवों के अकादमिक अध्ययन और अनुसंधान के बीच चर्चा, संवाद, अध्ययन और शोध कार्य शुरू करना/करवाना। 
  • (53) सदस्यों के मध्य मित्रवत व्यवहार को प्रोत्साहित करने के साथ उनमें भाईचारे एवं सहयोग स्थापित करना।
  • (54) सदस्यों की कार्यशैली एवं जीवनशैली में सुधार के साथ-साथ, उनके सामाजिक स्तर को राष्ट्र तथा समाज के बीच ऊँचा उठाने हेतु जो भी जरूरी हो कार्य करना/करवाना।
  • (55) इस संगठन के लक्ष्यों से सम्बन्धित भारत सरकार और राज्य सरकारों की धर्मनिरपेक्षता, सामाजिक न्याय, लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना सम्बन्धी नीतियों और कार्यक्रमों का प्रचार-प्रसार करना/करवाना और सदस्यों को उन योजनाओं से अवगत कराना जो कि उनके लाभ और उत्थान के लिए बनाई जाती हैं।
  • (56) लोकतंत्र, समाजवाद, सामाजिक न्याय, समानता, भ्रातृत्व और धर्मनिरपेक्षता आदि का सदस्यों को ज्ञान देना और लगातार व्यक्तिगत सम्पर्क द्वारा सदस्यों को इन सबके प्रति भरोसा बनाए रखने के लिए प्रेरित करना।
  • (57) सर्वोत्तम, वैज्ञानिक और आधुनिकतम तकनीक के प्रयोग व संचालन, सुरक्षा एवं पर्यावरण संरक्षण के बारे में सदस्यों को सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक जानकारी और ज्ञान देना/दिलवाना। 
  • (58) सदस्यों को इस प्रकार से प्रेरित करना कि वे विकलांगों व कुष्ठ जैसे असाध्य रोगों से पीड़ितों की मदद और सेवा करने को आगे आयें। साथ ही विकलांग, गूंगे व नेत्रहीनों को स्वावलंबी बनाने के लिए कार्य करना/करवाना
  • (59) सदस्यों को देहदान, अंगदान और नेत्र दान के लिए प्रेरित करना और नेत्रहीन सहायता कोष स्थापित करके नि:सहायों के नेत्र बनवाने के लिए कार्य करना/करवाना तथा अंधों को घुंघरूदार लाठियां उपलब्ध करवाना।
  • (60) तूफान, भूकम्प या प्राद्भतिक आपदा, चक्रवात, महामारी आदि के समय जरूरतमन्दों को सहयोग देना। स्थानीय स्तर पर और, या हर एक शाखा स्तर पर इसके लिए कोष की स्थापना करना।
  • (61) पुराने और अनुपयोगी वस्त्रों को आम लोगों से दान में एकत्रित कर, उन्हें कीटाणु मुक्त करके एक वस्त्र कोष बनाकर अकाल, बाढ़, भूकम्प या महामारी से पीड़ितों और जरूरतमन्दों के बीच वितरित करना/करवाना।
  • (62) सदस्यों के बच्चों के समग्र उत्थान, चरित्र निर्माण, वास्तविक राष्ट्रीय भावना के विकास के लिये और वांछित शिक्षा प्रदान करने हेतु बाल वाटिका, विद्यालय, महाविद्यालय, विश्‍वविद्यालय आदि की स्थापना करना/करवाना।
  • (63) सदस्यों को प्रफुल्लित और स्वस्थ जीवन प्रदान करने हेतु योग्य स्वास्थ्य रक्षक टीम तैयार करना, अस्पताल खोलना और उनका संचालन करना। जिनके मार्फत विशेष रूप से निर्धन और जरूरतमंद बच्चों तथा गर्भवती महिलाओं को हानिरहित दवा, पौष्टिक भोजन, मौसम के अनुकूल वस्त्रों आदि उपलब्ध करवाना। 
  • (64) आपदा या महामारी से प्रभावित सदस्यों को भोजन, वस्त्र, औषधि आदि से तत्काल सहायता करना/करवाना और विपत्ति से घिरे हुए व्यक्तियों को अपेक्षित स्नेह, सहयोग और देखरेख करना/देना/दिलवाना। 
  • (65) सदस्यों के हितार्थ विभिन्न विषयों के राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के ख्याति प्राप्त और योग्य विशेषज्ञों को आमंत्रित करके सेमिनार, वाद-विवाद, व्याख्यान, सम्मेलन, परिचर्चा आदि का आयोजन या नियमित संचालन करके, विज्ञान और प्रौद्योगिकी की बौद्धिक गतिविधियों को बढ़ावा देना।
  • (66) सदस्यों के हित में समय-समय पर विभिन्न साहित्यिक एवं सांस्द्भतिक कार्यक्रमों का आयोजन करना/करवाना।
  • (67) सदस्यों को सामाजिक सुरक्षा दिलाने हेतु विभिन्न उपाय करना, जिसमें दुर्घटना, बीमारी, वृद्धावस्था आदि स्थितियों में जरूरी सहायता, बीमा और संरक्षण एवं रोजगार/स्वरोजगार/पुनर्वास जैसे विषय भी शामिल हों।
  • (68) आम नागरिकों से सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों की प्रतिक्रिया लेना और सरकार को सरकारी नीतियों के प्रभावों से अवगत करवाना और सरकार से उचित सुधार और, या कार्यवाही करवाने हेतु प्रयास करना/करवाना।
  • (69) सदस्यों के स्वास्थ्य, खेलकूद, मनोरंजन एवं सांस्कृतिक उत्थान के लिये जरूरी कार्य करना/करवाना।
  • (70) सदस्यों के हितार्थ पत्र, पत्रिका, किताब, न्यूज केद्र, न्यूज ऐजेंसी, चैनल, रेडियो आदि का प्रकाशन/प्रसारण/संचालन करना/करवाना। सदस्यों के लघु समाचार पत्र पत्रिकाओं को विज्ञापनों के माध्यम से सहायता अनुदान देना। जिनका कार्य वास्तव में इस संगठन के लक्ष्य एवं उद्देश्यों की अभिवृद्धि की दृष्टि से महत्वपूर्ण हो।
  • (71) सदस्यों के हित में समय-समय पर विभिन्न हैल्थ एवं खेलकूद सम्बन्धी कार्यक्रमों का आयोजन करवाना।
  • (72) राष्ट्रीय एकता एवं भाषायी सौहार्द के उद्देश्य से अन्तर्भाषायी सम्मेलनों/शिविरों का आयोजन करवाना और सदस्यों के हितार्थ पुस्तकालयों, शिक्षालयों, वाचनालयों, स्वास्थ्यालयों आदि की स्थापना करना/करवाना।
  • (73) महत्वपूर्ण एवं उपयोगी साहित्यिक तथा शैक्षिक महत्व की विदेशी या क्षेत्रीय भाषा की पुस्तकों का हिन्दी या अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद करना/करवाना और इसके अन्तर्गत उन कृतियों को भी सम्मिलित करना जो सांस्कृतिक समन्वय तथा राष्ट्रीय भावनात्मक एकता की दृष्टि से श्रेष्ठ साहित्य की कोटि में आती हों।
  • (74) रोजगारोन्मुखी कार्यक्रमों का संचालन, जिनमें कंप्यूटर, हिन्दी आशुलिपि, टंकण, प्रशिक्षण आदि भी हों।
  • (75) इस संगठन के उद्देश्यों की अभिवृद्धि करने वानी उत्कृष्ट कृतियों के प्रकाशन के लिए सदस्य लेखकों को वित्तीय सहायता देना जो किसी कारण से स्वयं अपनी कृतियों के प्रकाशन की व्यवस्था न कर सकते हों।
  • (76) सदस्यों के साथ भेदभाव, अन्याय, शोषण, अत्याचार, उत्पीड़न, छुआछूत, अस्पृश्यता आदि की स्थितियॉं होने या घटनाएँ घटने पर इस संगठन द्वारा या इस संगठन के मार्गदर्शन में सिविल, आपराधिक मुकदमें/शिकायत कायम करके या करवाकर के यथासमय उचित कठोर कार्यवाही करना व करवाना और इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु सदस्यों और पदाधिकारियों को विशेष रूप से प्रशिक्षित कर पारंगत करना/करवाना।
  • (77) सरकारी कार्य प्रणाली में सभी भारतीय भाषाओं को अपनाने के लिये जरूरी प्रयास करना/करवाना।
  • (78) योग्य व्यक्तियों को हक रक्षक दल में पदांकित, पंजीकृत, अनुक्रमांकित, मनोनीत, नियोजित, संगठित करना और, या इस संगठन की निर्धारित प्रकार की सदस्यता प्रदान करना और, या सदस्यों/पदाधिकारियों को सदस्यता या नियुक्ति के पत्र, प्रमाण-पत्र, परिचय-पत्र, पुरस्कार, सम्मान-पत्र, प्रशस्ति-पत्र आदि प्रदान करना।
  • (79) सदस्यों के हितार्थ एवं सदस्यों को उनके आपसी विचारों, अनुभवों, ज्ञान आदि से लाभान्वित करवाने हेतु सभाओं, सम्मेलनों, कैम्पों, सेमीनारों, कार्यशालाओं, विचारशालाओं, प्रशिक्षण शालाओं आदि का आयोजित करना और करवाना तथा इस संगठन द्वारा और, या इस संगठन के अनुबन्ध पर या जैसे भी सम्भव हो पत्र, पत्रिकाएँ, पुस्तकें, कार्यक्रमों आदि का प्रकाशन, प्रसारण, प्रदर्शन, मंचन आदि करना/करवाना।
  • (80) उक्त बिन्दु-4 के उप बिन्दु (1) में वर्णित सभी वर्गों के जन प्रतिनिधियों को उनके अधिकार एवं कर्त्तव्यों के निर्वहन के लिये संवैधानिक, वैधानिक, राजनैतिक और व्यावहारिक जानकारी प्रदान कर प्रशिक्षित करना/करवाना।
  • (81) उक्त बिन्दु-4 के उप बिन्दु (1) में वर्णित सभी वर्गों के जन प्रतिनिधियों को इस प्रकार से प्रेरित और प्रशिक्षित करना/करवाना, जिससे कि वे संविधान के अनुसार अपने वर्गों का सही से प्रतिनिधित्व करने में सक्षम हो सकें।
  • (82) उक्त बिन्दु-4 के उप बिन्दु (1) में वर्णित सभी वर्गों के लोक सेवकों को इस प्रकार से प्रोत्साहित और प्रशिक्षित करना/करवाना, जिससे कि वे संविधान के अनुसार अपने वर्गों का सही से प्रतिनिधित्व करने में सक्षम हो सकें। 
  • (83) इस संगठन के उद्देश्यों के अनुरूप पूर्व से कार्यरत संगठनों का हक रक्षक दल में विलय करना। इस संगठन के नियन्त्रण में सदस्यों के हित संवर्द्धन के लिये सरकारी या गैर-सरकारी या निजी क्षेत्र में सेवारत/कार्यरत कर्मचारियों/अधिकारियों और, या असंगठित कामगारों के हितार्थ प्रकोष्ठ या संगठनों की स्थापना करना और, या पूर्व से संचालित संगठनों से सहयोग प्राप्त करना या उनका सहयोग करना, उनके साथ मिलकर संघ या महासंघ गठित करना और, या मिलकर संयुक्त रूप से कार्य करना।
  • (84) सदस्यों के हितार्थ समान उद्देश्यों के लिये कार्यरत/संचालित अन्य संगठनों के साथ सह-सम्बन्ध और, या समन्वय स्थापित कर राष्ट्रीय स्तर पर सदस्यों के हित में संरक्षण एवं उत्थान के लिये नीतियॉं बनाना/बनवाना और, या एक महासंघ की स्थापना करना/करवाना।
  • (85) उक्त बिन्दु-4 के उप बिन्दु (1) में वर्णित सभी वर्गों के हितों के विरुद्ध बनाये गये नियमों, उप नियमों, आदेशों या न्यायिक या प्रशासनिक निर्णयों और सरकारी नीति को बदलवाने के लिये जनजागरण/प्रयास करना/करवाना। 
  • (86) इस संगठन के सदस्यों को जनसंख्या वृद्धि, अशिक्षा, बाल-विवाह, बेमेल विवाह, दहेज, सट्टा, जुआ, मद्यपान, अंधविश्‍वास, अमानवीय परम्पराओं/कुप्रथाओं, जन्मजातीय विभेद, धूम्रपान, गुठखा, ड्रग्स आदि बुराईयों के दुष्परिणामों आदि से अवगत करवाकर, सदस्यों को इन सब बुराईयों से मुक्ति पाकर सत्यनिष्ठ, विज्ञान सम्मत, तर्क-सम्मत और प्रगतिशील जीवन जीने के लिये प्रोत्साहित करना/करवाना और अपनी-अपनी मौलिक सांस्कृतिक पहचान को कायम रखते हुए सभ्य मानव समाज की संस्कृति, सामाजिक प्रतिमानों एवं सामाजिक मूल्यों को अपनाने तथा शिक्षा के प्रचार-प्रसार को बढावा देने के लिये सैद्धान्तिक और व्यावहारिक प्रयास करना/करवाना।
  • (87) इस संगठन के उद्देश्यों के अनुरूप सदस्यों और उनके परिजनों/जरूरतमन्दों के हितार्थ विभिन्न स्रोतों से धन, संसाधन, सामग्री आदि एकत्रित करना, दान देना/लेना और भूमि, भवन, वृद्धाश्रम, बालाश्रम, महिला आश्रम, अनाथाश्रम, गोदाम, विद्यालय, अस्पताल, शिक्षालय, भोजनालय, मकान, दुकान, कार्यालय, सभागार, छात्रावास/होस्टल, अतिथिगृह/गैस्ट हाऊस, पुस्तकालय, वाचनालय, आवास, धर्मशाला, खेल के मैदान, जिम, व्यायाम शाला, होटल, सामुदायिक भवन, सांस्कृतिक भवन आदि निर्माण करना, खरीदना, संचालित करना/करवाना, बेचना, रेहन रखना, किराये से लेना/देना इत्यादि।
  • (88) सदस्यों, सदस्यों के परिजनों और समाज के लोगों में स्वस्थ प्रतियोगिता एवं प्रगति की भावना जागृत करने के लिये इस संगठन के माध्यम से या यथासमय जैसा भी सम्भव हो या जैसा उचित प्रतीत हो, तद्नुसार विभिन्न विषयों की प्रतियोगिताएँ आयोजित कर, सदस्यों के समग्र विकास और उत्थान के लिये कार्य करना/करवाना। 
  • (89) सदस्यों और सदस्यों के परिजनों को सक्षम बनाने या उनके गुजारे एवं विकास हेतु जरूरी संसाधन जुटाकर उनके लिये स्थायी/अस्थायी स्व-रोजगार और, या व्यवसाय हेतु संसाधन जुटाकर लघु औद्योगिक इकाईयों की स्थापना करना/करवाना और उनको जरूरी ज्ञान, प्रशिक्षिण एवं अनुदान या ॠण प्रदान करना/करवाना।
  • (90) समाज सुधारक ज्योतिराव फुले, भारत रत्न एवं संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अम्बेड़कर, आदिवासी स्वतन्त्रता सैनानी एवं क्रान्तिकारी बिरसा मुण्डा आदि सामाजिक न्याय और गैर-बराबरी/अन्धविश्‍वास/जन्मजातीय विभेदक व्यवस्था से मुक्ति आदि के लिये संघर्षरत रहे/संघर्षरत सभी महान पूर्वजों/वर्तमान या पूर्व समाज सुधारकों/प्रेरणा स्रोतों आदि के सामाजिक योगदान या उनके साहित्य या संघर्ष या कार्यों के बारे में सदस्यों को विभिन्न माध्यमों से जानकारी देना। साथ ही साथ उनके नाम से विभिन्न स्तरों पर, विभिन्न प्रकार के सम्मान, पुरस्कार और, या प्रशस्ति-पत्र या प्रतियोगिता आदि स्थापित/प्रारम्भ कर योग्य व पात्र सदस्यों को पुरस्द्भत करना/करवाना। 
  • (91) समाज सुधारक ज्योतिराव फुले, भारत रत्न एवं संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अम्बेड़कर, आदिवासी स्वतन्त्रता सैनानी एवं क्रान्तिकारी बिरसा मुण्डा आदि सामाजिक न्याय और गैर-बराबरी/अन्धविश्‍वास/मनुवाद से मुक्ति आदि के लिये संघर्षरत/संघर्षरत रहे सभी महान पूर्वजों/वर्तमान या पूर्व समाज सुधारकों/प्रेरणा स्रोतों आदि के नामों से विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण केन्द्रों, शिविरों, पुस्तकालयों, वाचनालयों, शोध केन्द्रों, बाल-महिला-वृद्ध-अनाथ आश्रमों, विद्यालयों, चिकित्सालयों, तकनीकी/सांस्कृतिक, कलात्मक, वैज्ञानिक, क्रीड़ात्मक, साहित्यिक, पर्यावरण आदि से सम्बन्धित शिक्षण-प्रशिक्षण केन्द्रों/संस्थानों/उपक्रमों/निकायों आदि की स्थापना करना/करवाना।
  • (92) सदस्यों को सभी उपलब्ध संवैधानिक, कानूनी और अन्य वैधानिक उपचारों की प्राप्ति हेतु कार्य करना।
  • (93) सदस्यों के बच्चों के शैक्षिक विकास के लिये जगह-जगह पर, विशेषकर दूर-दराज के पिछड़े, दलित और आदिवासी क्षेत्रों में छात्र-छात्राओं के लिये पृथक-पृथक नि:शुल्क आवासीय सरकारी पब्लिक/कॉन्वेण्ट स्कूल्स और तकनीकी/प्रशिक्षण केन्द्रों की स्थापना करने/करवाने के लिये समुचित कार्यवाही करना/करवाना।
  • (94) विभिन्न आरक्षित वर्गों में शामिल जातियों/जनजातियों के नकली/फर्जी जाति प्रमाण-पत्रों के आधार पर आरक्षण/प्रतिनिधित्व का गैर-कानूनी या अवैध या छलपूर्वक लाभ/सुविधाएँ ले रहे/ले चुके या ले सकने वाले अनाधिकृत लोगों के विरुद्ध सख्त कानूनी कार्यवाही कर, ऐसे लोगों को दण्डादिष्ट करवाना।
  • (95) उक्त वर्णित एवं भविष्य में निर्धारित किये जाने/जा सकने वाले इस संगठन के सभी उद्देश्यों और लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु सरकारी, अर्द्ध-सरकारी, निजी आदि देशी-विदेशी निकायों, उपक्रमों, सरकार, दानदाताओं, संस्थानों, सदस्यों, आम लोगों आदि से दान, चन्दा, सहयोग, शुल्क, आदि के रूप में धनादि करना और करवाना। 
  • (96) उक्त वर्णित एवं भविष्य में निर्धारित किये जाने/जा सकने वाले इस संगठन के सभी उद्देश्यों और लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु सरकारी, अर्द्ध-सरकारी, निजी, सोशल मीडिया आदि देशी-विदेशी प्रचार-प्रसार के माध्यमों द्वारा आकर्षक, लुभावने, आदि कार्यक्रम, विज्ञापन इत्यादि प्रकाशित, प्रसारित व प्रदर्शित करना और करवाना।
  • (97) उक्त वर्णित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये सम्पूर्ण भारत में ग्राम/ढाणी से उच्चतम स्तर तक शाखाओं/इकाईयों, प्रकोष्ठों, समितियों आदि का गठन करना और उनके संचालन के नियम बनाकर उन्हें संचालित करना।
  • (98) इस संगठन के उद्देश्यों, लक्ष्यों, नियमों, उप नियमों और इस संगठन के नेतृत्व द्वारा समय- समय पर पारित नीतियों के अनुसार नये उद्देश्यों, लक्ष्यों, नियमों और उप नियमों का निर्धारण एवं क्रियान्वयन करना। 
  • (99) उक्त बिन्दु-4 के उप बिन्दु (1) में वर्णित सभी वर्गों के हितार्थ जो कुछ भी जरूरी हो करना/करवाना।
  • (100) ऐसे समस्त कार्य करना और करवाना जो उक्त एवं भविष्य में निर्धारित किये जाने/जा सकने वाले इस संगठन के उद्देश्यों, लक्ष्यों, सदस्यों के मूल कर्त्तव्यों, नियमों और उप नियमों की प्राप्ति/पूर्ति और इस संगठन के संविधान के अनुसार कार्य करने के लिये समयानुकूल और आवश्यक प्रतीत हों।
  • घोषणा :
    ‘हक रक्षक दल सामाजिक संगठन’ (Haq Rakshak Dal Samajik Sangathan) के उपरोक्त उद्देश्यों एवं लक्ष्यों की पूर्ति या प्राप्ति में इस संगठन के किसी सदस्य या पदाधिकारी का कोई निजी स्वार्थ या लाभ निहित नहीं है। इस संगठन की चल या अचल सम्पत्ति को और इससे प्राप्त सम्पूर्ण आय-कमाई को इस संगठन के अन्तर्नियमों में उल्लिखित इस संगठन के उद्देश्यों तथा लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए पूर्णत: प्रयोग किया जायेगा तथा इसी में लगायी जायेगी और इसका कोई भी लाभ इस संगठन के वर्तमान या निवर्तमान सदस्यों को या वर्तमान या निवर्तमान सदस्यों के माध्यम से दावा करने वाले किसी एक या अधिक व्यक्तियों को भुगतान नहीं किया जायेगा या लाभ प्राप्त नहीं करेगा या किसी प्रकार से इस संगठन का कोई भी सदस्य इस संगठन की किसी भी प्रकार की चल या अचल सम्पत्ति पर कोई दावा नहीं करेगा या इसकी सदस्यता के आधार पर किसी भी प्रकार का लाभ प्राप्त नहीं करेगा, क्योंकि इस संगठन का जन्म सम्पूर्ण रूप से इसके उपरोक्त उल्लिखित उद्देश्यों की प्राप्ति/पूर्ति के लिये कार्य करने के लिये ही हुआ है और इसी के लिये इसकी स्थापना की गयी है।’’

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