नोट : प्रत्येक प्रावधान के आगे संविधान की नियम संख्या लिखी हुई है।
57. राष्ट्रीय कार्यकारिणी के अधिकार एवं कर्त्तव्य : राष्ट्रीय प्रमुख के नेतृत्व में राष्ट्रीय कार्यकारिणी निम्न लिखित अधिकार एवं कर्त्तव्यों का निर्वहन एवं निष्पादन करने को अधिकृत, जिम्मेदार और उत्तरदायी होगी :-
57. राष्ट्रीय कार्यकारिणी के अधिकार एवं कर्त्तव्य : राष्ट्रीय प्रमुख के नेतृत्व में राष्ट्रीय कार्यकारिणी निम्न लिखित अधिकार एवं कर्त्तव्यों का निर्वहन एवं निष्पादन करने को अधिकृत, जिम्मेदार और उत्तरदायी होगी :-
(1) इस संगठन का वार्षिक बजट बनाना और राष्ट्रीय महासभा से पारित करवाना।
(2) इस संगठन की चल-अचल सम्पत्ति की सुरक्षा करना।
(3) इस संगठन के प्रबन्धन, संचालन एवं अन्य सभी प्रकार की जरूरतों के लिए यथासमय स्थायी या अस्थायी (तात्कालिक जरूरत के अनुसार) वैतनिक और अवैतनिक कर्मचारियों/अधिकारियों की नियुक्ति, निलम्बन, पदमुक्ति करना एवं उनके पदनाम, वेतन, भत्ते, अधिकार, कर्त्तव्यों, सेवा-शर्तों आदि का निर्धारण करना।
(4) राष्ट्रीय महासभा के निर्णयों/प्रस्तावों का क्रियान्वयन करना एवं हर शाखा स्तर पर क्रियान्वयन करवाना।
(5) इस संगठन के उद्देश्यों, सिद्धान्तों, प्रस्तावों, निर्णयों के क्रियान्वयन और संविधान के संचालन, प्रबन्धन और व्यवस्था बनाने के लिए समय और आवश्यकता के अनुसार देशभर में इस संगठन के नियन्त्रण में राष्ट्रीय और अन्य सभी स्तरों पर आदिवासी, दलित, पिछड़ा, महिला, युवा, जनप्रतिनिधि, कर्मचारी, अधिकारी, सेवानिवृत कर्मचारी/ अधिकारी, लोक सेवक, कामगार, मजदूर, बौद्धिक, विद्यार्थी या अन्य प्रकार के वांछित प्रकोष्ठ, अन्वेषण/सतर्कता/सर्वेक्षेण आदि कार्यों के लिये विभाग या प्रभाग, शाखाएं, इकाईयॉं, समितियां, उप समितियां आदि बनाना/स्थापित करना और इनके संचालन तथा प्रबन्धन के लिए इस संविधान में बिना संशोधन किये अवश्यकतानुसार नियम/उपनियम बनाना/नियमों में कभी भी परिवर्तन/परिवर्द्धन/निरसन या कमी या बढ़ोतरी करना या नये नियम बनाना।
(6) इस संगठन के अधीन स्थापित समितियों/शाखाओं/प्रकोष्ठों/प्रभागों/विभागों आदि से या अन्य स्रोतों से प्राप्त रिपोर्टों की समीक्षा कर, उन पर निर्णय लेना और निर्णयों को लागू करना/करवाना।
(7) राष्ट्रीय महासभा की ओर से भेजे गये मामलों, विवादों और विषयों पर अन्तिम निर्णय लेना। और
(8) इस संगठन के इस संविधान के भाग-एक (ज्ञापन पत्र) के बिन्दु-4 में वर्णित समस्त उद्देश्यों एवं लक्ष्यों की पूर्ति एवं प्राप्ति के लिये यथासमय जो भी जरूरी हो करना और नये उद्देश्यों, लक्ष्यों और सदस्यों के लिये नये मूल कर्त्तव्यों का निर्धारण करना या उनमें परिवर्तन/परिवर्द्धन करना/करवाना।
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