Tuesday, July 14, 2015

शाखा-संचालन

नोट : प्रत्येक प्रावधान के आगे संविधान की नियम संख्या लिखी हुई है।

28. शिथिलता : राष्ट्रीय प्रमुख को अधिकार होगा कि सभी स्तर की शाखाओं के सभी पदाधिकारियों की पात्रता, योग्यता, निर्वाचन, कार्यकाल आदि में शिथिलता या छूट (कमी/वृद्धि) प्रदान की जा सकेगी।


34. शाखा, समिति और उप समिति : राष्ट्रीय प्रमुख द्वारा या राष्ट्रीय प्रमुख द्वारा अधिकृत पदाधिकारी द्वारा इस संगठन के संविधान के भाग-1 (ज्ञापन-पत्र) के बिन्दु-4 में वर्णित उद्देश्यों एवं लक्ष्यों की प्राप्ति, इस संविधान में वर्णित नियमों और उप-नियमों, सिद्धान्तों, राष्ट्रीय महासभा तथा राष्ट्रीय कार्यकारिणी के निर्णयों, निर्देशों और प्रस्तावों के क्रियान्वयन के साथ-साथ इस संगठन के संचालन और प्रबन्धन में नेशनल गवर्निंग बॉडी को सहयोग करने हेतु प्रत्येक स्तर पर इस संगठन के नियन्त्रण में इस संगठन की शाखाओं/समितियों/उप समितियों/प्रकोष्ठों आदि का गठन किया जा सकेगा। जरूरी होने पर शाखाओं/समितियों/उप समितियों/प्रकोष्ठों के संचालन के लिये राष्ट्रीय प्रमुख द्वारा यथासमय आवश्यकतानुसार स्वविवेक से नियम एवं उप नियम बनाकर जारी/लागू किये जा सकेंगे।

82. शाखाओं की स्थापना : इस संगठन के उद्देश्य एवं लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु राष्ट्रीय प्रमुख द्वारा सम्पूर्ण भारत में आवश्यकतानुसार इस संगठन की कितनी भी और किसी भी स्तर की शाखाओं/इकाईयों की स्थापना की जा सकेगी, लेकिन साधारण हालातों में शाखाएँ निम्न स्तरों पर स्थापित की जा सकेंगी :-

  • (1) स्थानीय शाखा (ग्राम पंचायत/ग्राम/शहरी वार्ड) : यथासमय निर्धारित सदस्यों के समूह या क्षेत्र को ग्राम पंचायत/ ग्राम/शहरी वार्ड या अन्य किसी भी नाम से सम्बद्धता प्रदान करके स्थानीय शाखा घोषित/गठित किया जा सकेगा।
  • (2) ब्लॉक शाखा : किसी भी सरकार द्वारा घोषित किसी भी तहसील/तालुका या किसी भी समकक्ष क्षेत्र को, ब्लॉक/तहसील/तालुका शाखा या अन्य किसी भी नाम से इस संगठन से सम्बद्धता प्रदान करके ब्लॉक/ तहसील/तालुका स्तर की शाखा घोषित/गठित किया जा सकेगा।
  • (3) जिला शाखा : किसी भी सरकार द्वारा घोषित किसी भी जिला या किसी भी समकक्ष क्षेत्र को जिला शाखा या अन्य किसी भी नाम से इस संगठन से सम्बद्धता प्रदान करके जिला शाखा घोषित/गठित किया जा सकेगा।
  • (4) सम्भाग शाखा : किसी भी सरकार द्वारा घोषित किसी भी सम्भाग/मण्डल या किसी भी समकक्ष क्षेत्र को जिला/मण्डल शाखा या अन्य किसी भी नाम से इस संगठन से सम्बद्धता प्रदान करके सम्भाग/मण्डल शाखा घोषित/गठित किया जा सकेगा।
  • (5) प्रदेश शाखा : किसी भी सरकार द्वारा घोषित किसी भी प्रदेश या केन्द्र शासित प्रदेश या किसी भी समकक्ष क्षेत्र को प्रदेश शाखा या अन्य किसी भी नाम से इस संगठन से सम्बद्धता प्रदान करके प्रदेश/प्रान्तीय शाखा घोषित/गठित किया जा सकेगा।
83. शाखासभा : इस संगठन की प्रत्येक शाखा की अपनी-अपनी शाखासभा होगी, जो उस शाखा की सर्वोच्च नीति-निर्धारक बॉडी कहलायेगी। सामान्यत: निम्न 5 स्तरों पर शाखासभाओं का गठन निम्न प्रकार से होगा :-

  • (1) स्थानीय शाखासभा : शाखा क्षेत्र के समस्त सदस्य एवं शाखा अध्यक्ष स्थानीय शाखासभा का गठन करेंगे।
  • (2) ब्लॉक शाखासभा : ब्लॉक शाखा के अधीन की स्थानीय शाखाओं के सभी (यदि कोई हों तो) शाखा अध्यक्ष, सचिव और कोषाध्यक्ष एवं ब्लॉक शाखा के सभी सक्रिय सदस्य और ब्लॉक अध्यक्ष मिलकर ब्लॉक शाखासभा का गठन करेंगे।
  • (3) जिला शाखासभा : जिला शाखा के अधीन की सभी ब्लॉक शाखाओं के सभी (यदि कोई हों तो) शाखा अध्यक्ष, सचिव व कोषाध्यक्ष तथा समस्त सक्रिय सदस्य और जिला अध्यक्ष मिलकर जिला शाखासभा का गठन करेंगे।
  • (4) सम्भाग शाखासभा : सम्भाग शाखा के अधीन की सभी जिला शाखाओं के सभी (यदि कोई हों तो) शाखा अध्यक्ष, महासचिव और कोषाध्यक्ष तथा सभी वरिष्ठ सदस्य और सम्भाग अध्यक्ष मिलकर सम्भाग शाखासभा का गठन करेंगे।
  • (5) प्रदेश/प्रान्तीय शाखा : प्रदेश शाखा के अधीन की सभी सम्भाग शाखाओं के सभी (यदि कोई हों तो) शाखा अध्यक्ष, महासचिव और कोषाध्यक्ष, सभी जिला शाखाओं के सभी (यदि कोई हों तो) शाखा अध्यक्ष, महासचिव और कोषाध्यक्ष तथा समस्त वरिष्ठ सदस्य प्रान्तीय/प्रदेश अध्यक्ष मिलकर प्रान्तीय/प्रदेश शाखासभा का गठन करेंगे।
84. शाखासभाओं की बैठकें : (सभी शाखाओं पर)

  • (1) प्रत्येक स्तर पर कम से कम एक नियमित बैठक अनिवार्य होगी।
  • (2) जरूरी होने पर एकाधिक नियमित/विशेष/आपात बैठकें भी आहूत की जा सकेंगी।
  • (3) सभी प्रकार की बैठकें शाखा कार्यकारिणी की सलाह पर, सम्बन्धित शाखा अध्यक्ष द्वारा आहूत की जायेंगी।
  • (4) कोरम : न्यूनतम 30 फीसदी सदस्यों की उपस्थिति पर बैठक का कोरम पूर्ण हो सकेगा।
  • (5) कोरम पूर्ण नहीं होने पर : कोरम के अभाव में बैठक स्थगित की जा सकेगी और अत्यावश्यक होने पर पुन: एक दिन पश्‍चात पूर्व निर्धारित समय एवं स्थान पर बैठक आहूत की जा सकेगी। ऐसी स्थिति में कोरम की कोई आवश्यकता नहीं होगी, लेकिन बैठक में विचारणीय विषय पूर्व निर्धारित ही होंगे। या कोरम के अभाव में उपस्थित सदस्यों की सर्व-सम्मति से प्रस्तुत विषयों पर अनुपस्थित सदस्यों से मोबाइल/फोन/मेल/अन्य तरीके से सहमति प्राप्त करके निर्णय लिये जा सकेंगे और लिये गये निर्णयों पर अनुपस्थित सदस्यों से बाद में व्यक्तिगत रूप से सहमति के हस्ताक्षर प्राप्त किये जा सकेंगे। ऐसी स्थिति में भी कोरम की कोई आवश्यकता नहीं होगी, लेकिन बैठक में विचारणीय/निर्णीत विषय पूर्व निर्धारित ही होंगे।
  • (6) बैठक की सूचना : नियमित बैठक की सूचना 10 दिन पूर्व, विशेष बैठक की सूचना 3 दिन पूर्व और आपात या अत्यावश्यक बैठक की सूचना 24 घंटे पहले भी दी जा सकेगी।
  • (7) सदस्यों के अनुरोध पर विशेष बैठक आहूत करना : शाखासभा की कुल सदस्य संख्या के एक तिहाई (1/3) सदस्यों के लिखित अनुरोध पर शाखा अध्यक्ष द्वारा 10 दिन के अन्दर-अन्दर शाखासभा की विशेष बैठक आहूत करना अनिवार्य होगा। अन्यथा निर्धारित अविधि गुजर जाने के बाद, उक्त सदस्यों में से तीन सदस्य नोटिस जारी कर सकेंगे और ऐसी बैठक के निर्णय, अन्यथा सही होंगे तो कोरम के न होने पर शाखासभा की पूर्ण बैठक के निर्णयों के समान ही वैध एवं मान्य होंगे।
  • (8) पुष्टि : शाखा अध्यक्ष द्वारा पुष्टि किये जाने के बाद ही शाखासभा के निर्णय मान्य और लागू होंगे।
  • (9) असहमति : यदि शाखाध्यक्ष, शाखासभा के किसी निर्णय या प्रस्ताव की पुष्टि करने से इनकार कर दें तो-
  • (क) सर्व-प्रथम तो-ऐसा मामला शाखासभा द्वारा वापस ले लिया जायेगा। या
  • (ख) न्यूनतम तीन महिने की अवधि के बाद यदि जरूरी हो तो ऐसे निर्णय या प्रस्ताव को फिर से शाखासभा में प्रस्तुत किया जायेगा। जिसे शाखासभा द्वारा फिर से यथावत पारित करना होगा।
  • (ग) उक्त बिन्दु (ख) के अनुसार शाखासभा द्वारा पारित निर्णय/प्रस्ताव की दो तिहाई शाखासभा सदस्यों द्वारा पुष्टि किये जाने के बाद शाखा अध्यक्ष को पुष्टि करनी होगी, अन्यथा अपने पद से त्यागपत्र देना होगा।
  • (10) मत मूल्य : प्रत्येक शाखासभा में शाखासभा के प्रत्येक सदस्य के मत का मूल्य एक समान अर्थात् एक होगा।
  • (11) अध्यक्षता : प्रत्येक शाखासभा में शाखासभा की अध्यक्षता शाखा अध्यक्ष द्वारा की जायेगी।
  • (12) निर्णायक मत : शाखासभा में बराबर मत आने पर शाखा अध्यक्ष का मत निर्णायक होगा।
85. शाखासभाओं के अधिकार एवं कर्त्तव्य :

  • (1) शाखा कार्यकारिणी पर नियन्त्रण बनाये रखना।
  • (2) शाखा अध्यक्ष, महासचिव/सचिव और कोषाध्यक्ष का चुनाव करना और जरूरत पड़ने पर शाखा कार्यकारिणी के पदाधिकारियों के विरुद्ध महा अभियोग लाना और पारित करना।
  • (3) शाखा कार्यकारिणी के निर्णयों और प्रस्तावों की समीक्षा और पुष्टि करना।
  • (4) शाखा कार्यकारिणी द्वारा पेश बजट, नीति, नियम, प्रस्ताव आदि को पारित करना।
  • (5) शाखा कार्यकारिणी के मार्फत इस संगठन के उद्देश्यों, नियमों और सिद्धान्तों को क्रियान्वित करवाने के लिये स्थानीय स्तर नीति बनाना और राष्ट्रीय कार्यकारिणी द्वारा निर्धारित नीति और, या कार्ययोजना को क्रियान्वित करवाना।
  • (6) अपनी शाखा के कार्यक्षेत्र में एक स्तर उच्च शाखा के शाखा अध्यक्ष या अन्य पदाधिकारियों को आमन्त्रित करके  और निम्न स्तर की शाखाओं (यदि कोई हों तो) को शामिल करते हुए संयुक्त कार्यक्रम आयोजित करना।
  • (7) अपनी शाखा में राष्ट्रीय नेतृत्व की सभा, कार्यशाला/विचारशाला-आयोजित करना/करवाना।
  • (8) संविधान में संशोधन, परिवर्तन या परिवर्द्धन हेतु राष्ट्रीय कार्यकारिणी को सुझाव प्रस्ताव प्रस्तुत करना।
  • (9) संविधान में अन्यत्र वर्णित अधिकार एवं कर्त्तव्यों का निर्वहन करना/करवाना। और
  • (10) शाखा स्तर के आन्तरिक विवादास्पद मसलों का स्थानीय स्तर पर निर्णय करना।
86. शाखा कार्यकारिणियों का गठन :

86.1-चुनाव : प्रत्येक शाखा स्तर पर निर्वाचन समिति की देखरेख में शाखासभा के सदस्यों की आमराय से या कुल सदस्यों के साधारण बहुमत से निम्न तीन पदों पद पदाधिकारियों का चुनाव किया जायेगा :-
  • (1) शाखा अध्यक्ष-1
  • (2) शाखा महासचिव-1 (केवल जिला से प्रदेश शाखा तक) या
  • शाखा सचिव-1 (केवल स्थानीय और ब्लॉक शाखा पर) और
  • (3) शाखा कोषाध्यक्ष।
86.2-बहुमत के अभाव में पुन: चुनाव : उक्त नियम-86.1 में बताये अनुसार किसी भी पद पर, यदि किसी भी प्रत्याशी को शाखासभा की कुल सदस्य संख्या के साधारण बहुमत के बराबर मत नहीं मिलेंगे तो सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाले दो प्रत्यााशियों के मध्य पुन: चुनाव करवाया जायेगा और फिर जिसको बहुमत मिलेगा, वही निर्वाचित पदाधिकारी घोषित किया जायेगा। अन्यथा ऐसे पद पर उच्च नेतृत्व द्वारा मनोनयन किया जायेगा।

87. निर्वाचित पदाधिकारियों का कार्यकाल : उक्त नियम-86.1 में वर्णित तीनों प्रकार के पदों पर निर्वाचित सभी पदाधिकारियों का कार्यकाल दो वर्ष होगा, लेकिन निर्वाचित पदाधिकारी अगला चुनाव होने तक या अगली व्यवस्था होने तक अपने-अपने पद पर कार्य करते रहेंगे।

88. निर्वाचित पदाधिकारियों की योग्यताएँ : सम्बन्धित शाखासभा का ऐसा कोई भी सदस्य जो-

  • (1) न्यूनतम 25 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो।
  • (2) न्यूनतम 10 वीं कक्षा तक शिक्षा प्राप्त हो।
  • (3) अनुशासित, स्वच्छ, निष्पक्ष एवं प्रभावशाली छवि का व्यक्ति हो। और, या
  • (4) एक स्तर उच्च शाखा (जिसका भी अस्तित्व हो) या राष्ट्रीय प्रमुख की राय में योग्य एवं उपयुक्त हो।
89. शाखा कार्यकारिणियों में अन्य पदाधिकारियों की नियुक्ति : सभी स्तर की शाखाओं के निर्वाचित तीनों पदाधिकारियों द्वारा आमराय से इस संगठन के किन्हीं योग्य एवं उपयुक्त सदस्यों में से शाखा कार्यकारिणी के निम्न पदों पर जरूरत के अनुसार संख्या में पदाधिकारियों की नियुक्ति हेतु एक स्तर उच्च शाखा को अनुसंशा की जायेगी। नियुक्त सभी पदाधिकारी निर्वाचित तीनों पदाधिकारियों की इच्छा पर्यन्त अपने-अपने पदों पर बने रहेंगे :-
  • (01) उपाघ्यक्ष
  • (02) सहायक महासचिव
  • (03) उप कोषाध्यक्ष
  • (04) सहायक सचिव
  • (05) संगठन सचिव
  • (06) प्रवक्ता
  • (07) सहायक प्रवक्ता
  • (08) कार्यालय सचिव
  • (09) ऑडीटर
  • (10) सब-ऑडीटर
  • (11) कार्यकारिणी सदस्य
  • (12) सलाहकार
90. शाखा कार्यकारिणी के पदाधिकारियों के अधिकार एवं कर्त्तव्य : इस संगठन के सभी सदस्यों और सभी स्तर की शाखाओं के पदाधिकारियों को इस संगठन के संविधान एवं उद्देश्यों के अनुरूप कार्य करना होगा एवं अपनी छवि तथा निजी जीवन में व्यक्तिगत आचरण को स्वच्छ बनाए रखना सभी का प्रथम कर्त्तव्य होगा। इसके अलावा शाखा कार्यकारिणी के पदाधिकारियों के पृथक-पृथक अधिकार एवं कर्त्तव्य अग्रलिखित प्रावधानानुसार होंगे :-

91. शाखा अध्यक्ष (Branch President) :

  • (1) कार्यकारिणी का गठन, पुनर्गठन व विघटन : शाखा महासचिव/सचिव (जो भी लागू हो) और कोषाध्यक्ष के साथ मिलकर शाखा कार्यकारिणी का गठन, पुनर्गठन व विघटन करना।
  • (2) पदों, अधिकारों व कर्त्तव्यों का निर्धारण : उच्च नेतृत्व की पूर्वानुमति से अपनी शाखा कार्यकारिणी के पदों और पदाधिकारियों के पृथक-पृथक या संयुक्त अधिकार एवं कर्त्तव्यों का निर्धारण/पुनर्निर्धारण करना/करवाना।
  • (3) बैठकें आहूत करना : शाखा कार्यकारिणी और शाखा सभा की कभी भी और कितनी भी बैठकें आहूत करना।
  • (4) बैठकों की अध्यक्षता एवं प्रतिनिधित्व : शाखा सभा और शाखा कार्यकारिणी, शाखा स्तर की आम सभाओं आदि की बैठकों की अध्यक्षता करना एवं इस संगठन का शाखा स्तर पर प्रतिनिधित्व करना।
  • (5) संविदा एवं दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करना : शाखा स्तर पर इस संगठन की ओर से संविदा एवं अन्य दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करना या इस हेतु अन्य किसी पदाधिकारी या प्रतिनिधि को अधिद्भत करना।
  • (6) सदस्यता/नियुक्तियॉं एवं मनोनयन करना/करवाना : अन्यत्र वर्णित प्रावधानों या उच्च नेतृत्व के निर्देशों के अनुसार इच्छुक आवेदकों को सदस्यता प्रदान करवाना और शाखा कार्यकारिणी और शाखासभा पदाधिकारियों एवं सदस्यों की नियुक्ति, पदमुक्ति, निलम्बन, बर्खास्तगी एवं मनोनयन करना/करवाना।
  • (7) निर्णय : इस संगठन के आन्तरिक विवादास्पद मामलों में या अपील पर शाखा स्तर पर निर्णय देना।
  • (8) त्याग पत्र मांगना/स्वीकार/अस्वीकार करना : शाखा स्तर के सदस्यों व पदाधिकारियों से जरूरत होने पर, सीधे-सीधे त्यागपत्र मांगना और, या सदस्यों एवं पदाधिकारियों के त्याग-पत्र सीधे-सीधे स्वीकार या अस्वीकार करना।
  • (9) शाखा के अधीन शाखाओं को सम्बद्धता व मान्यता प्रदान करने/नहीं करने और उनकी स्थापना/गठन/ विघ टन/ निलम्बित करने या नहीं करने की अनुशंसा करना : शाखा के नियन्त्रण में, किसी भी स्तर की इकाई या शाखाओं, उप शाखाओं, समितियों, उप समितियों, विशिष्ट प्रकोष्ठों/विभागों/अनुभागों इत्यादि की स्थापना/गठन/ विघटन करने या नहीं करने और इन्हें कभी भी भंग या विघटित या निलम्बित करने की अनुशंसा करना।
  • (10) पुष्टि : शाखा कार्यकारिणी और, या शाखासभा के निर्णयों की पुष्टि करना या पुष्टि करने से इनकार करना।
  • (11) खाते का संचालन : नियम-24.2 के अनुसार कोषाध्यक्ष और उप कोषाध्यक्ष के साथ शाखा के नाम से किसी बैंक या बैंको/पोस्ट ऑफिस/ऑफिसों में खाता खुलवाकर उसका संचालन कर लेन-देन करना।
  • (12) काउंसलर्स की नियुक्ति अनुशंसा : योग्य, सक्षम व प्रतिष्ठित या विषय विशेषज्ञ सदस्यों या समाज के योग्य लोगों में से शाखा सभा की बैठकों में भाग लेने के लिए उचित संख्या में काउंसलर्स की नियुक्ति हेतु अनुशंसा करना।
  • (13) संरक्षण : सामाजिक, धार्मिक या अन्य भेदभाव, मनमानी, उत्पीड़न, छुआछूत, भ्रष्टाचार, अत्याचार, असमानता, शोषण, गैर-बराबरी, वैमनस्यता आदि से शाखा के समस्त सदस्यों के वर्गों के आम लोगों को कानूनी संरक्षण व शीघ्र न्याय दिलाने के लिए इस संगठन के उद्देश्यों व नियमों के अनुसार उचित कार्यवाही करना व करवाना।
  • (14) आयोजन और पुरस्कार : इस संगठन की शाखा के सदस्यों के वर्गों के आम लोगों को उनके आपसी विचारों, अनुभवों, विविध प्रकार के ज्ञान आदि से लाभान्वित करवाने और, या भ्रष्टाचार, अत्याचार, भेदभाव, असमानता आदि अनैतिक या विधि-विरुद्ध कुकृत्यों से मुक्त आदर्श समाज का निर्माण करने हेतु सभाओं, नाटकों, जनसुनवाईयों, जन अदालतों, सम्मेलनों, जन संसद, जन विधानसभा, कैम्पों, सेमिनारों, प्रशिक्षणों, कार्यशालाओं, प्रतियोगिताओं, सांस्कृतिक कार्यक्रमों आदि का स्थान-स्थान पर, आयोजन करना, समाचार/वैचारिक पत्र-पत्रिकाएँ, पुस्तकें, स्मारिकाएँ/पोस्टर/पैम्पलेट आदि प्रकाशित/प्रसारित/प्रचारित करना/करवाना और, या विशिष्ट सदस्यों और, या आम लोगों के सम्मान एवं प्रोत्साहन के लिए प्रमाण-पत्र, पुरस्कार, ट्रॉफी, प्रशस्ति-पत्र, सम्मान-पत्र, पारितोषिक आदि प्रदान करना व करवाना।
  • (15) इस संगठन के संविधान और सम्पत्ति की सुरक्षा करना और करवाना।
  • (16) इस संगठन की शाखा के स्तर के आन्तरिक विवादों/विषयों पर निर्णय देना।
  • (17) इस संगठन के उच्च नेतृत्व को शाखा स्तर की प्रत्येक स्थिति और गतिविधि से अवगत करवाना।
  • (18) शाखा स्तर पर इस संगठन के संगठन को मजबूत बनाने के लिये कार्य करना एवं करवाना।
  • (19) कोष स्वीकृती/अस्वीकृत करना एवं इस संगठन की शाखा का नियमानुसार संचालन करना।
  • (20) इस संगठन के शाखा कार्यालय के पत्र-व्यवहार, आय-व्यय आदि से सम्बन्धित अभिलेख, कार्यालय के संसाधनों आदि का सम्पूर्ण विवरण अद्यतन बनाकर/बनावाकर रखना और इस संगठन के उद्देश्यों के अनुरूप सामान्य पत्र-व्यवहार करना/करवाना, प्रेस विज्ञप्ति जारी करना/करवाना, पे्रस वार्ता/कॉंफ्रेंस/सभा/कार्यशाला आदि को सम्बोधित करना/करवाना आदि। और
  • (21) अन्य : उन समस्त अधिकार एवं कर्त्तव्यों का निर्वहन व निष्पादन करना जो इस संविधान में शाखा कार्यकारिणी के लिए या शाखा अध्यक्ष या शाखा पदाधिकारियों के लिये या इस संगठन की शाखा के नाम से अन्यत्र कहीं भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से वर्णित हैं और, या उच्च नेतृत्व द्वारा जैसा भी निर्देशित किया जाये।
92. शाखा उपाध्यक्ष (Branch Vice President) :

  • (1) कार्यवाहक शाखा अध्यक्ष : शाखा अध्यक्ष की स्थायी या लम्बी अनुपस्थिति में शाखा अध्यक्ष और, या उच्च नेतृत्व द्वारा नामित शाखा उपाध्यक्ष द्वारा कार्यवाहक शाखा अध्यक्ष के रूप में शाखा अध्यक्ष के लिये निर्धारित सामान्य और अत्यावश्यक अधिकार एवं कर्त्तव्यों का उच्च नेतृत्व के निर्देशानुसार अधिकतम दो माह तक निर्वहन करना।
  • (2) शाखा अध्यक्ष के कार्यों में सहयोग : शाखा अध्यक्ष की उपस्थिति में शाखा अध्यक्ष द्वारा निर्धारित और, या निर्देशित अन्य समस्त अधिकार एवं कर्त्तव्यों का निर्वहन करते हुए शाखा अध्यक्ष को उनके सभी कार्यों में मांगे जाने पर और बिना मांगे जरूरी सहयोग एवं परामर्श देते रहना।
93. महासचिव/सचिव (जो भी लागू हो) :

  • (1) शाखा कार्यालय के पत्र-व्यवहार सम्बन्धी अभिलेख, कार्यालय संसाधनों आदि का सम्पूर्ण विवरण अद्यतन बनाकर रखना और उद्देश्यों के अनुरूप सामान्य पत्र-व्यवहार करना, प्रेस विज्ञप्ति जारी करना, प्रेस कॉँफ्रेंस करना आदि।
  • (2) शाखा की प्रगति का वार्षिक विवरण तैयार कर, शाखासभा में विचारार्थ प्रस्तुत करना और शाखासभा की बैठकों, के दौरान, शाखासभा के सदस्यों के प्रश्‍नों व पूरक प्रश्‍नों के उत्तर देना।
  • (3) शाखा अध्यक्ष के दिशा-निर्देशानुसार शाखा का नेतृत्व करना और शाखा में वैतनिक/अवैतनिक अधिकारियों और कर्मचारियों पर नियन्त्रण बनाए रखते हुए, शाखा कार्यकारिणी के पदाधिकारियों का मार्गदर्शन करना/करवाना।
  • (4) शाखा के संगठनात्मक स्तर को सुदृढ़ करने हेतु निम्न स्तरीय शाखाओं एवं इकाईयों का गठन कराने, चुनाव पर्यवेक्षण करने, सदस्य संख्या और शाखाओं की संख्या में वृद्धि करने के लिए जरूरी कार्य करना/करवाना। और
  • (5) शाखा अध्यक्ष द्वारा निर्धारित और, या निर्देशित अन्य समस्त अधिकार एवं कर्त्तव्यों का निर्वहन करना और शाखा अध्यक्ष और उच्च पदाधिकारियों द्वारा निर्देशित/निर्धारित कार्यों का निर्वहन करना।
94. सहायक महासचिव/सहायक सचिव (जो भी लागू हो) : शाखा महासचिव/सचिव की अनुपस्थिति में शाखा महासचिव/सचिव के अधिकार एवं कर्त्तव्यों का निर्वहन करना और शाखा महासचिव/सचिव, शाखा अध्यक्ष एवं उच्च पदाधिकारियों द्वारा निर्देशित/निर्धारित अन्य कार्यों का निर्वहन करना।

95. शाखा कोषाध्यक्ष :

  • (1) शाखा के आय-व्यय के लेखे-जोखे का विवरण अद्यतन बनाकर रखना/प्रस्तुत करना और शाखा कार्यकारिणी या शाखासभा की बैठकों के दौरान आय-व्यय सम्बन्धी प्रश्‍नों व पूरक प्रश्‍नों के जवाब स्वयं देना और, या उप कोषाध्यक्ष के माध्यम/सहयोग से देना।
  • (2) बजट तैयार करना और बजट को शाखा कार्यकारिणी और, या शाखासभा से पारित करवाना।
  • (3) शाखा के लिये समस्त प्रकार के चन्दे, शुल्क, दान, अनुदान, उपहार, भेंट, सहायता आदि स्वीकार कर, इन्हें यथास्थान रिकार्ड पर इन्द्राज करना और, या इनकी प्राप्ति/पावती की रसीद देना।
  • (4) शाखा के सभी प्रकार के खर्चे के बिलों का रसीद लेकर भुगतान करना/करवाना।
  • (5) शाखा कार्यकारिणी या उच्च पदाधिकारियों और शाखा ऑडीटर/सब ऑडीटर द्वारा मांगे जाने पर शाखा के आय-व्यय से सम्बन्धित समस्त बिल, वाउचर, रसीद, कैश-बुक, लेजर आदि को निरीक्षण हेतु प्रस्तुत करना।
  • (6) शाखा के आकस्मिक कार्यों की पूर्ति हेतु न्यूनतम 1000 रुपये तक नगद राशि अपनी निजी अभिरक्षा में रखना।
  • (7) शाखा अध्यक्ष के साथ शाखा के खाते/खातों का संचालन करना। और
  • (8) शाखा अध्यक्ष द्वारा निर्धारित और, या निर्देशित अन्य समस्त अधिकार एवं कर्त्तव्योंं का निर्वहन करते हुए शाखा अध्यक्ष को उनके सभी कार्यों में सहयोग व परामर्श देते रहना।
96. शाखा उप कोषाध्यक्ष : शाखा अध्यक्ष के साथ शाखा के खाते का संचालन करना तथा शाखा कोषाध्यक्ष के सहयोगी के रूप में शाखा कोषाध्यक्ष के लिए निर्धारित अधिकार एवं कर्त्तव्यों का निर्वहन करना और साथ ही साथ शाखा अध्यक्ष द्वारा निर्धारित और, या निर्देशित अन्य समस्त अधिकार एवं कर्त्तव्योंं का निर्वहन करते हुए शाखा अध्यक्ष को उनके सभी कार्यों में सहयोग व परामर्श देते रहना।

97. शाखा कार्यकारिणी के अन्य पदाधिकारी : शाखा कार्यकारिणी के अन्य सभी पदाधिकारी शाखा अध्यक्ष द्वारा निर्धारित समस्त अधिकार एवं कर्त्तव्यों का निर्वहन सामान्यत : निम्नानुसार करेंगे :-

  • (1) ऑडीटर/सब ऑडीटर : शाखा के आय-व्यय के लेखे-जोखे और वार्षिक लेखे-जोखे की समय पर या आकस्मिक ऑडिट करना और ऑडिट के दौरान जानकारी में आयी सभी प्रकार की त्रुटियों, भूलों, अनियमितताओं आदि को रिकार्ड पर लाकर सुधार की कार्यवाही करना/करवाना तथा जिम्मेदार पदाधिकारियों और, या सदस्यों के विरुद्ध जरूरी सुधारात्मक या अनुशासनिक कार्यवाही की अनुशंसा सहित अपना प्रतिवेदन शाखा अध्यक्ष को प्रस्तुत करना और शाखा अध्यक्ष को उनके सभी कार्यों में सहयोग व परामर्श देते रहना।
  • (2) कार्यालय सचिव एवं सहायक कार्यालय सचिव : वरिष्ठ शाखा पदाधिकारियों के निर्देंशानुसार शाखा का समस्त प्रकार का रिकार्ड, दैनिक पत्र व्यवहार, कार्यालय, कार्यालय की सामग्री आदि को व्यवस्थित व सुरक्षित रखना एवं उच्च शाखा पदाधिकारियों की जानकारी में लाना और शाखा अध्यक्ष को उनके सभी कार्यों में सहयोग व परामर्श देते रहना।
  • (3) संगठन सचिव : शाखा के संगठनात्मक स्तर को मजबूत करने, निम्न स्तरीय शाखाओं का गठन करवाने, चुनाव पर्यवेक्षण करने, शाखा व सदस्य संख्या में विस्तार करने के साथ-साथ वरिष्ठ पदाधिकारियों द्वारा निर्धारित व निर्देशित अधिकार एवं कर्त्तव्यों का निर्वहन करना और उनके कार्यों में सहयोग करते हुए, उन्हें समय-समय पर जरूरी व समुचित परामर्श देते रहना और शाखा अध्यक्ष को उनके सभी कार्यों में सहयोग व परामर्श देते रहना।
  • (4) प्रवक्ता/सहायक प्रवक्ता : शाखा की गतिविधियों के सम्बन्ध में प्रेस-विज्ञप्ति/बयान जारी करना तथा मीडिया से मधुर व सकारात्मक सम्बन्ध कायम रखना, इसके अतिरिक्त इस संगठन के उद्देश्यों के अनुरूप मीडिया की खबरों को संकलित कर आवश्यक कार्यवाही हेतु वरिष्ठ शाखा पदाधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत करना। उच्च/वरिष्ठ शाखा पदाधिकारियों द्वारा निर्देशित कर्त्तव्यों का निर्वहन करते हुए, उन्हें जरूरी सहयोग एवं परामर्श देते रहना और शाखा अध्यक्ष को उनके सभी कार्यों में सहयोग व परामर्श देते रहना।
  • (5) विधि सलाहकार : सभी प्रकार के कानूनी मामलों में मांगे जाने पर या स्वयमेव जरूरी कानूनी सलाह देते रहना।
  • (6) अन्य : शाखा अध्यक्ष की अनुशंसा पर या राष्ट्रीय प्रमुख स्वविवेकानुसार तथा समय, स्थान एवं परिस्थितियों की आवश्यकता के अनुसार शाखा कार्यकारिणी में उक्त सभी प्रकार के पदों का एवं अन्य पदों के नामों व उनकी संख्या का सृजन, परिवर्तन व निर्धारण कर, उनके अधिकार एवं कर्त्तव्यों का निर्धारण, पुन: निर्धारण और विभाजन कर सकेंगे या करवा सकेंगे। तद्नुरूप ऐसे पदाधिकारियों को अपने अधिकार एवं कर्त्तव्यों का निर्वहन करना होगा।
98. शाखा कार्यकारिणी की संयुक्त जवाबदारी : प्रत्येक शाखा स्तरीय कार्यकारिणी के समस्त पदाधिकारी संयुक्त रूप से शाखासभा और उच्च नेतृत्व के प्रति जवाबदार एवं उत्तरदायी होंगे। इसलिये प्रत्येक शाखा कार्यकारिणी के प्रत्येक पदाधिकारी का प्रथम कर्त्तव्य होगा कि वह इस संगठन के हित में सर्वाधिक अच्छा नेतृत्व प्रदान करे।

99. महा अभियोग एवं निष्कासन : इस संगठन की किसी भी शाखा के किसी भी पद पर निर्वाचित, चयनित, नियुक्त या मनोनीत किसी भी पदाधिकारी के विरुद्ध निम्न आरोपों के आधार पर महाअभियोग/अभियोग का प्रस्ताव पारित कर उसे उसके पद से हटाया जा सकेगा :-

  • (1) इस संगठन के उद्देश्यों, नियमों, सिद्धान्तों, नीतियों और उच्च नेतृत्व के निर्देशों/निर्णयों के विरुद्ध कार्य करने या इनकी अवज्ञा करने पर या अनुशासनहीनता करने पर।
  • (2) भ्रष्ट या अनैतिक या अशोभनीय आचरण करने पर। और
  • (3) यथासमय निर्धारित/लिखित अन्य कारणों के आधार पर।

100. महा अभियोग की कार्यवाही : शाखा कार्यकारिणी के किसी भी पदाधिकारी के विरुद्ध एक महिना पूर्व लिखित नोटिस देकर शाखासभा के कुल सदस्यों के साधारण बहुमत से अविश्‍वास या महा अभियोग का प्रस्ताव पारित किया जाकर, ऐसे पदाधिकारी/पदाधिकारियों को पद से हटाया जा सकेगा, किन्तु ऐसे किसी भी पदाधिकारी को उसका पक्ष प्रस्तुत करने का सम्पूर्ण अवसर प्रदान किया जायेगा।

101. शाखा संचालन के नियमों में रद्दोबदल : इस संगठन के शाखा/प्रकोष्ठ/इकाई/प्रभाग संचालन और प्रबन्धन के सम्बन्धित समस्त नियमों (नियम-82 से नियम-105 तक) में वर्णित सभी प्रावधानों में यथासमय आवश्यकतानुसार कभी भी किसी भी प्रकार का रद्दोबदल करने, नये प्रावधान जोड़ने या बदलने या इनकी व्याख्या करने या नये नियम बनाने का इस संगठन के राष्ट्रीय प्रमुख को सम्पूर्ण अधिकार होगा।

102. प्रकोष्ठ/प्रभाग/विभाग आदि का गठन एवं संचालन : इस संगठन के नियन्त्रण में कितने ही प्रकोष्ठ, प्रभाग, विभाग, इकाई संस्थापित और गठित किये जा सकेंगे। जिनके गठन, प्रबन्धन, संचालन और कार्यप्रणाली के बारे में इस संगठन के राष्ट्रीय प्रमुख द्वारा आवश्यकतानुसार यथासमय नियम, उप-नियम, नीति, प्रक्रिया आदि बनायी जाकर लागू की जा सकेगी, जिसमें राष्ट्रीय प्रमुख द्वारा कभी भी परिवर्तन किया जा सकेगा।

103. कितने ही सदस्य और पदाधिकारी पदस्थ व अपदस्थ : इस संगठन के संचालन के हित में राष्ट्रीय प्रमुख द्वारा किसी भी स्तर पर कभी भी कितने ही पदाधिकारी, सदस्य पदस्थ या अपदस्थ या निलम्बित किये जा सकेंगे।

104. समस्त लोक सेवकों और जन प्रतिनिधियों को जोड़ना : इस संगठन के इस संविधान के भाग-1 (ज्ञापन-पत्र) के बिन्दु-4 उप बिन्दु-1 में वर्णित सभी वर्गों के सभी स्तर के लोक सेवकों और जन प्रतिनिधियों को इस संगठन की कार्यप्रणाली से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जोड़ने के लिये प्रत्येक शाखा कार्यकारिणी द्वारा हरसम्भव प्रयास करके और इस बारे में व्यावहारिक प्रस्ताव बनाकर राष्ट्रीय नेतृत्व के समक्ष प्रस्तुत किये जायेंगे। जिन पर विचार करके या स्वविवेकानुसार राष्ट्रीय प्रमुख द्वारा यथासमय अवश्यकतानुसार नियम बनाकर लागू किये जायेंगे।

105. प्रमाणीकरण : प्रमाणित किया जाता है कि यह उपरोक्त प्रति ‘हक रक्षक दल सामाजिक संगठन’ के संविधान के नियम और उप नियमों की सच्ची प्रति है।

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